रविवार, 12 जून 2016

खामोश चीख का शोर




जिंदगी का ऐसे किसी मोड़ से निकलना,जहां से ज़िंदगी के कई साल न सिर्फ मुड़ न जाएं..बल्कि हाथ से निकल जाएं ...फिसल जाएं ...और आप स्तब्ध खड़े रह जाएं ..चुपचाप...। सब कुछ ऐसे हो कि किसी से ना गिला कर पायें और न ही शिकायत ।  ऐसा एक शख्स के साथ हुआ ।

23 साल वो सलाखों के पीछे रहा । एक दिन उसे कहा गया कि तुम बेकसूर हो । 20 साल का वो नौजवान एक पल में 43 साल का अधेड़ हो गया । जिंदगी के दिन ,महीने ,साल कहीं फास्टफॉर्वर्ड में आगे निकल गए और वो कहीं पीछे रह गया । ज़िंदगी की छत से मानो जैसे ही वो उन सालों को नीचे देखने की कोशिश करता उसे अंधेरा ही दिखता । निसार उद दीन अहमद को 23 साल पहले बाबरी मस्जिद विध्वंस की पहली बरसी पर हुए धमाको के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था । फार्मेसी का ये छात्र 23 साल तक जेल में रहा लेकिन पुलिस को उसके खिलाफ़ सबूत नहीं मिले

अब जरा निसार को सुनिए -----आज मैं 43 साल का हूं । उस वक्त मेरी छोटी बहन 12 साल की थी जिसकी अब शादी हो चुकी है...उसकी बेटी 12 साल की है मेरी भतीजी.. एक साल की की थी लेकिन अब वो भी शादीशुदा है । मेरी ज़िंदगी में एक पूरी पीढ़ी गायब हो चुकी है । ऐसा क्यों हुआ ? कब हुआ मैं नहीं जानता । बस ये जानता हूं कि मेरे लिए ज़िंदगी खत्म हो चुकी है । मैं निसार खान हूं और एक ज़िंदा लाश हूं ।

निसार की कहानी पढ़ सुन कर ये व्यक्त करना मुश्किल है कि कि कैसा महसूस होता है । गुस्सा,खीज,दुख या इनसे उपजी एक खामोशी भरी बेचैनी । एक शख्स कहता है कि उसकी ज़िंदगी के 23 साल व्यवस्था की भेंट चढ़ गए...और इस बात का गवाह हर कोई था । समाज, कानून सब । निसार सही कहता है जब वो कहता है कि
वो समझ नहीं पा रहा कि वो खुद एक सच्चाई है या अफसाना । जिंदगी कोई गाने की डीवीडी तो नहीं जिसे रिवाइंड कर वो मनपसंद गाना सुन ले ...क्या कोई इस शख्स के उन जवान लम्हों को वापस ला सकता है जिनमें ज़िंदगी की खूबसूरती महसूस करने की ख्वाहिश कभी रही होगी । ये सही है कि वो खुशकिस्मत है क्योंकि कई लोगों को जीते जी इंसाफ़ कभी हासिल नहीं हो पाता..23 साल बाद ही सही वो जेल की सलाखों से बाहर है और खुली हवा में सांस ले रहा है । सवाल ये है कि क्या ये सही इंसाफ़ है कि किसी
से उसकी संभावनाओं से भरा जीवन छीन लीजिए कहिए लीजिए अब आप आज़ाद हैं...जियो अपनी ज़िंदगी  । इसीलिए  निसार की खामोश आंखों की ये चीख
कि मैं एक ज़िंदा लाश हूं ...कान फाड़ देता है । 

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