शनिवार, 19 मार्च 2016

मुखौटे


ऑस्कर वाइल्ड ने एक जगह कहीं लिखा है कि कभी कभी सच के पीछे जाने के लिए मुखौटे पहनने पड़ते हैं । मुखौटे । इस शब्द में ही एक रहस्य सा है , मिस्ट्री और सस्पेंस के उस नॉवेल की तरह जिसके आखिरी पन्ने को बार-बार पढ़ने का मन करता है , किताब खत्म करने से पहले ही । उन दराज़ों को खोलने की चाहत की तरह जिसे   चाबी से  बंद किया जाता है , कभी ना खोलने के लिए ।
इसी तरह मुखौटे के पीछे क्या है इसे जानने की इच्छा मेक्सिकन घोड़ों की रफ्तार की मानिंद ऐसी होती है कि उस पर लगाम के लिए खुद मुखौटा पहनना पड़ता है । बनना पड़ता है । कॉफी हाउस में आखों में आखें डाल बातें करते कपल हों , बाज़ार में दुकानों में सामान बेचते सेल्समेन, या फिर  घरों की चारदीवारी में पति -पत्नी,मां -बेटा, भाई बहन ध्यान से देखिए मुखौटे सबने लगा रखे हैं । शेक्सपियर ने कहा था कि दुनिया एक रंगमंच है और हम सब अभिनय करते अभिनेता । इस दुनिया के थियेटर में लोग अपने किरदार
मुखौटे पहन कर ही अदा करते हैं । जो जितना मोटा और गहरा मुखौटा लगा पाए वो ही ज्यादा बढ़िया अभिनेता । आप किसी के बारे में सोचते क्या हैं ? ये उसको पता
 लगे अगर इसमें फायदा है तो यकीनन ताउम्र मुखौटे से ही सामना होगा। कभी-कभी अहम की मोटी परत भी मुखौटे की वजह बनती है । कोई किसी को पसंद करता है
लेकिन अगर दिल में अहम भाव है या फिर दुनिया का डर तो मुखौटा ही सामने आएगा । लेकिन ऐसा नहीं है कि मुखौटे की कोई काट नहीं । दरअसल मुखौटे की असल काट मुखौटा ही है । मुखौटा ही मुखौटे का जवाब है । ज़हर की ज़हर से काट की तरह वाली युक्ति यहां भी काम करती है । दिन का कोई पल तो वो होगा ही जब मुखौटा गिरेगा ही और असलियत सामने आ ही जाएगी । अब ज़रुरी नहीं कि ये असलियत हमेशा दुख देने वाली भी हो । कई बार अपनी अंतरंग भावनाओं को चोटिल होने से बचाने के लिए मुखौटे को एक कवच की तरह इस्तेमाल किया जाता है । बाहरी आवरण  के ज़रिए मन की कोमलता और दुर्बलता सबके सामने ना आ जाए इसके लिए कृत्रिम चेहरा,हाव भाव सब का सहारा लिया जाता है । लेकिन जैसे कि हर नाटक का अंत होता है ऐसे ही किसी दिन अभिनय का मुखौटा गिर पड़ता है । और इंसान को पता तक नहीं चलता ।

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